बेशर्मी भरी धमकी : बीबीसी के खिलाफ कर - सर्वेक्षण

बीबीसी के खिलाफ कर - सर्वेक्षण जैसी कार्रवाइयों का मकसद डर का माहौल पैदा करना है

February 16, 2023 11:23 am | Updated 11:23 am IST

बीबीसी के नई दिल्ली और मुंबई स्थित दफ्तरों में आयकर (आई-टी) विभाग के दो दिवसीय सर्वेक्षण को ब्रिटेन के इस जाने-माने सार्वजनिक प्रसारक और मौजूदा शासन को उसकी अतीत की हरकतों के लिए जिम्मेदार ठहराने के इच्छुक मीडिया संस्थानों को डराने की कोशिश के रूप में नहीं देखना मुश्किल है। सर्वेक्षण करने वाले अधिकारियों ने कहा कि वे “ट्रांसफर प्राइसिंग” और “मुनाफे को कहीं और मोड़ने” से जुड़े आरोपों की जांच कर रहे थे। हालांकि, तथ्य यह है कि यह कार्रवाई दो-भागों वाली डॉक्यूमेंट्री “इंडिया: द मोदी क्वेश्चन” के रिलीज के चलते हुई। यह डॉक्यूमेंट्री कई महत्वपूर्ण सवाल उठाती है। विशुद्ध रूप से लेखा/वित्तीय सर्वेक्षण की इस प्रक्रिया में पत्रकारों को भी घसीट लेने की कवायद को सिर्फ मीडिया कर्मियों को डराने-धमकाने वाली हरकत के रूप में ही समझा जा सकता है। इसके अलावा, यह सब सूचना और प्रसारण मंत्रालय की ओर से की गई कार्रवाइयों के नक्शेकदम पर भी हुआ। मंत्रालय ने बहुत पहले ही आईटी नियम, 2021 और आईटी अधिनियम, 2000 की धारा 69ए के तहत आपातकालीन शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए ऑनलाइन मीडिया प्लेटफार्मों को इस डॉक्यूमेंट्री के पहले भाग के लिंक को ‘डिसेबल’ करने के लिए अति उत्साही आदेश जारी किए थे और बाद में इससे जुड़े लिंक वाले ट्वीट को ब्लॉक किया था। भाजपा के प्रवक्ताओं की प्रतिक्रियाएं सिर्फ इस धारणा को और मजबूत ही करती हैं कि ये सारी हरकतें एक आलोचक मीडिया संस्थान द्वारा किए गए कार्यों को अवैध करार देने की कोशिश है। भाजपा के एक प्रवक्ता ने तो बीबीसी को एक “भ्रष्ट” निगम तक कहा। अगर अतीत में किए गए इसी किस्म की कवायदों पर गौर किया जाए, तो बीबीसी के खिलाफ किया गया सर्वेक्षण कोई अपवाद नहीं है। वर्ष 2021 में डिजिटल समाचार संगठन न्यूज़लॉन्ड्री में छापा डाला गया था, 2017 में एनडीटीवी के खिलाफ सीबीआई का छापा पड़ा था और 2021 में डिजिटल पोर्टल न्यूज़क्लिक के खिलाफ प्रवर्तन निदेशालय एवं दैनिक भास्कर समूह के खिलाफ आई-टी विभाग द्वारा तलाशी ली गई थी। पिछले साल, डिजिटल मीडिया-फंडिंग संस्थान इंडिपेंडेंट एंड पब्लिक-स्पिरिटेड मीडिया फाउंडेशन और थिंक टैंक, सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च को इस किस्म के “सर्वेक्षण” झेलने पड़े थे। इन सबमें सुस्पष्ट और साझा कड़ी यह है कि इन मीडिया संगठनों ने केंद्र सरकार की आलोचना करने वाली सामग्रियां प्रकाशित की हैं।

एक वैश्वीकृत दुनिया में एक विकासशील राष्ट्र और उभरती अर्थव्यवस्था के तौर पर भारत का दावा यह है कि वह संवैधानिक रूप से गारंटीकृत संस्थागत स्वतंत्रता और शक्तियों के पृथक्करण से लैस एक फलता-फूलता लोकतंत्र है और उन अधिनायकवादी शासन - व्यवस्थाओं के उलट है, जिन्होंने आर्थिक समृद्धि को बढ़ावा तो दिया है, लेकिन संस्थागत नियमों एवं मूल्यों के मोर्चे पर लचर रहे हैं। इस दावे की तह में सत्ता में बैठे लोगों को जवाबदेह ठहराने वाले प्रेस की आजादी का विचार है। भले ही मीडिया संगठन असहज कर देने वाले सवाल उठाते हैं, लेकिन उन सवालों के जवाब तथ्यात्मक, तर्कसंगत और सधे हुए होने चाहिए। बीबीसी की डॉक्यूमेंट्री के मामले में प्रतिक्रियाएं चाहे जो कुछ भी रही हों, लेकिन वे तथ्यात्मक, तर्कसंगत और सधे हुए तो कतई नहीं हैं। इस डॉक्यूमेंट्री तक लोगों को पहुंचने से रोकने की कोशिश में, सरकार एक हठधर्मी और अब बीबीसी के दफ्तरों में इस सर्वेक्षण से वह एक डराने वाली संस्था के रूप में सामने आई है। यह भारत की वैश्विक छवि के लिए अच्छा नहीं है। लेकिन इससे भी बुरी बात तो यह है कि यह देश के नागरिकों की मौजूदा आजादी के लिए एक स्पष्ट खतरा है।

This editorial has been translated from English, which can be read here.

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