विज्ञान के लिए ‘बूस्टर’: विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय के बजटीय आवंटन का संदर्भ

नौकरशाही से जुड़ी प्रक्रियाओं को आसान बनाकर अनुसंधान के लिए अधिक धन की व्यवस्था की जानी चाहिए

February 03, 2023 12:15 pm | Updated 12:15 pm IST

सामान्यतया आम चुनाव से पहले वाले साल के बजट भाषण में समाज के ज्यादा से ज्यादा हिस्से को हरसंभव खुश करने का प्रयास किया जाता है। इसी कड़ी में अनुसंधान एवं विकास (आर एंड डी) के बड़े हिस्से को वित्तपोषित करने वाले मंत्रालयों को किए जाने वाले आवंटन में भी एक सकारात्मक बढ़ोतरी की जाती है। विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय को इस साल 16,361.42 करोड़ रुपये का आवंटन मिला है, जोकि कागज पर पिछले अनुमान से 15 फीसदी अधिक है। हालांकि, 2021-22 और 2022-23 के दौरान इस मंत्रालय के आवंटन में 3.9 फीसदी की कमी देखी गई थी। इस साल बढ़ोतरी का बड़ा हिस्सा विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) के खाते में गया है - 7,931.05 करोड़ रुपये, पिछले साल से 32.1 फीसदी अधिक। जैव प्रौद्योगिकी विभाग या डीबीटी के लिए यह आवंटन 2,683.86 करोड़ रुपये (3.9 फीसदी की मामूली बढ़ोतरी) और वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान विभाग (डीएसआईआर) के लिए 5,746.51 करोड़ रुपये (1.9 फीसदी की बढ़ोतरी) है। ‘डीप ओशन मिशन’ - जिसमें ‘डीप-सबमर्सिबल व्हीकल’ को विकसित करने वाले अन्य घटक शामिल हैं - और नेशनल रिसर्च फाउंडेशन को पिछले सालों की तुलना में काफी ज्यादा बढ़ोतरी हासिल हुई है। यह इस बात का संकेत है कि केंद्र सरकार का तत्काल फोकस इनपर है।

बजट भाषण में ‘आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस’ के क्षेत्र में उत्कृष्ट अनुसंधान के प्रति समर्पित केंद्रों में निवेश, प्रयोगशाला में बनने वाले हीरे के उत्पादन के लिए प्रौद्योगिकी को उन्नत करने की पहल और सिकल सेल एनीमिया में अनुसंधान के लिए एक केंद्र की स्थापना का कई बार संदर्भ आया। इन सभी प्रयासों को भले ही सरकार की विभिन्न शाखाओं में फैलाया जा सकता है, लेकिन किसी भी बजटीय आवंटन से बुनियादी अनुसंधान के क्षेत्र में उल्लेखनीय बढ़ोतरी का कोई संकेत नहीं मिलता है। पिछली सरकारों की तरह ही यह सरकार भी अनुसंधान एवं विकास पर खर्च की प्रतिशतता को सकल घरेलू उत्पाद के एक फीसदी से ज्यादा करने में सफल नहीं हुई है। भले ही अलग-अलग देश ‘आर एंड डी’ पर होने वाले खर्च को अलग-अलग तरीके से परिभाषित करते हों, लेकिन इसका एक नियम यह बताता है कि विकसित एवं तकनीकी रूप से उन्नत देश

अपने सकल घरेलू उत्पाद का दो फीसदी से अधिक ‘आर एंड डी’ पर खर्च करते हैं। ग्लोबल इनोवेशन इंडेक्स के 2022 के एक अनुमान के अनुसार, वैज्ञानिक साहित्य के दुनिया के सबसे बड़े रचियताओं में से एक होने के बावजूद भारत का ‘आर एंड डी’ पर खर्च सकल घरेलू उत्पाद के लगभग 0.7 फीसदी के आसपास ही सिमटा रहता है। भारत में अनुसंधान एवं विकास के लिए धन ही एकमात्र चुनौती नहीं है, बल्कि विभिन्न विभागों के आवंटन में उल्लेखीय बढ़ोतरी की कमी यह दर्शाती है कि इस देश में वैज्ञानिक संस्थानों को समाहित कर पाने की क्षमता सीमित है। एक बड़ी चुनौती अनुसंधान जगत के विद्वानों को वादा किया गया धन समय पर नहीं मिलना और शोधकर्ताओं का जरूरी गुणवत्तापूर्ण उपकरणों के इंतजार में बैठना और नौकरशाही के सनक के चक्रव्यूह में फंसे रहना है। अनुसंधान का बड़ा हिस्सा सरकार द्वारा वित्त पोषित किया जा रहा है और निजी क्षेत्र की भागीदारी में नाममात्र की ही बढ़ोतरी हुई है। अगले कुछ सालों में, सरकार को न सिर्फ फंडिंग का आकार बढ़ाना चाहिए, बल्कि उसे फंडिंग का कारगर इस्तेमाल सुनिश्चित करने के लिए प्रक्रियाओं को भी आसान बनाना चाहिए।

This editorial has been translated from English, which can be read here.

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