पराजितों का दंगा: ब्राजील में बोल्सोनारो समर्थकों की हिंसा

बोल्सोनारो को हार स्वीकार करना चाहिए और अपने समर्थकों से शांत होने के लिए कहना चाहिए

January 11, 2023 12:59 pm | Updated 12:59 pm IST

ब्राजील में पिछले साल हुए राष्ट्रपति चुनाव में लुइज इनासियो लूला डी सिल्वा के हाथों शिकस्त खाने से पहले, जायर बोल्सोनारो ने बार-बार यह कहा था कि अगर वह राष्ट्रपति पद के लिए दोबारा नहीं चुने जाते हैं, तो ऐसा सिर्फ धोखाधड़ी के जरिए ही मुमकिन है। उन्होंने अपने राजनीतिक विरोधियों को “चोर” कहा था और निर्वाचित न होने की स्थिति में हिंसा की चेतावनी दी थी। चुनावी हार के बाद उन्होंने सार्वजनिक तौर पर पद छोड़ने से इनकार कर दिया। 1 जनवरी को लूला के पदभार संभालने से दो दिन पहले, वह ब्राजील छोड़कर फ्लोरिडा चले गए। वहीं, उनके समर्थकों ने ब्राजीलिया में सेना मुख्यालय के बाहर तंबू डालकर विरोध-प्रदर्शन जारी रखा। हैरत की बात नहीं है कि लूला के पदभार संभालने के एक हफ्ते बाद श्री बोल्सोनारो के हजारों समर्थकों ने ब्राजील में लोकतंत्र के तीन संस्थागत प्रतीकों- राष्ट्रपति भवन, सर्वोच्च न्यायालय और कांग्रेस- पर हमला बोल दिया। उनका कहना है कि चुनाव में धांधली हुई है। वे सेना से अपील कर रहे हैं कि लूला की सरकार को अपदस्थ करके वह सत्ता अपने हाथ में ले लें। रविवार को ब्राजीलिया में जो कुछ हुआ उसके लिए श्री बोल्सनारो को जिम्मेदार ठहराया जाना चाहिए। यह डोनल्ड ट्रंप के समर्थकों द्वारा यूएस कैपिटॉल पर 4 जनवरी, 2021 को किए गए हमले की याद दिलाता है। सत्ता में रहते हुए, उन्होंने संस्था-विरोधी और ब्राजील की राजनीति में षडयंत्र रचने वाले धुर दक्षिणपंथी लंपट तत्वों को बढ़ावा दिया। सैन्य तानाशाही के समर्थक श्री बोल्सोनारो के मन में देश की संस्थाओं के प्रति कोई सम्मान नहीं था। ब्राजील के धनी वर्ग का समर्थन और उनकी चुप्पी ने प्रदर्शनकारियों को रविवार को राज्य की संस्थाओं पर हमला करने का मंसूबा प्रदान किया।

इस दंगे ने लूला के सामने बतौर राष्ट्रपति पहली बड़ी चुनौती पेश की है। उन्होंने कहा कि बोल्सोनारो के सहयोगी ब्राजीलिया के गवर्नर इबनीस रोचा के नियंत्रण वाली स्थानीय पुलिस ने हमलावरों को रोकने के लिए पर्याप्त कोशिश नहीं की। लेकिन लूला ने जल्द ही संघीय सुरक्षा अधिकारियों को तैनात कर दिया और दंगाइयों को राजकीय इमारतों से खदेड़ दिया। सर्वोच्च न्यायालय ने भी हस्तक्षेप किया और सैन्य पुलिस को सेना मुख्यालय के बाहर श्री बोल्सनारो के समर्थकों के शिविरों को खाली कराने का आदेश दिया। साथ ही, श्री रोचा को तीन महीने के लिए पद से हटा दिया। हालांकि यह काफी नहीं है। देश की स्थिरता के लिहाज से ब्राजील को चुनाव से जुड़े इस संकट को खत्म करना चहिए। अब तक इसके संस्थान, लंपट तत्वों से पैदा होने वाले खतरों से परिपक्वता के साथ निपटे हैं। हालांकि अपेक्षाकृत एक युवा लोकतंत्र के रूप में ब्राजील का हिंसक अतीत बहुत पुराना नहीं है। इसलिए, इनके नेताओं को लोकतांत्रिक स्थिरता पर किसी भी तरह के खतरे को नहीं सहना चाहिए। ब्राजील को पूरे मामले की जांच के जरिए दंगों की तह तक जाना चाहिए। साथ ही, इस दंगे को उकसाने वाले, इसे वित्तीय मदद पहुंचाने वाले और इसमें शरीक होने वाले सभी लोगों को न्याय के कटघरे में खड़ा करना चाहिए और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि ऐसी घटना दोबारा न हो। इस बीच, जांच के लंबित रहने के दौरान श्री बोल्सोनारो कम से कम सार्वजनिक रूप से यह स्वीकार कर सकते हैं कि उन्हें चुनाव में शिकस्त मिली है और अपने समर्थकों से इस तथ्य को मान लेने और देश के संविधान का सम्मान करने को कह सकते हैं।

This editorial has been translated from English, which can be read here.

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