अगर बजट बनाना एक दुरूह काम है, तो इसकी बारीकियों के मद्देनजर केंद्रीय बजट की व्याख्या करना और भी जोखिम भरा है। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण का पांचवां और अगले साल होने वाले आम चुनावों से पहले मौजूदा भारतीय जनता पार्टी की अगुवाई वाली सरकार का यह अंतिम पूर्ण बजट सभी वाजिब मसलों पर ध्यान देता है। सभी लोगों, खासतौर पर युवाओं, महिलाओं, किसानों, अन्य पिछड़े वर्गों, अनुसूचित जातियों एवं अनुसूचित जनजातियों के लिए समृद्धि सुनिश्चित करने वाला समावेशी विकास, विकास एवं रोजगार के एक गुणक के तौर पर काम करने वाले बुनियादी ढांचे तथा निवेश पर ध्यान केंद्रित करना, हरित या पर्यावरणीय रूप से टिकाऊ विकास को संभव करने वाली नीतियां, मध्यम एवं वेतनभोगी वर्गों तथा पेंशनभोगियों के लिए रियायतों की एक श्रृंखला सहित प्रत्यक्ष करों को तर्कसंगत बनाना और सबसे महत्वपूर्ण बात यह कि राजकोषीय सुदृढ़ीकरण की राह पर अडिग रहते हुए इन सबको अंजाम देना। इसे “अमृत काल का पहला बजट” करार देते हुए, सुश्री सीतारमण ने 2014 में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा पहली बार पदभार संभाले जाने के बाद से लेकर अबतक सत्तारूढ़ दल की उपलब्धियों पर जोर देते हुए चुनावी बिगुल फूंका। उन्होंने कहा कि दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था की बन जाने और सभी के लिए बेहतर जीवन स्तर सुनिश्चित करने के सरकार के प्रयासों की बदौलत प्रति व्यक्ति आय दोगुनी से भी अधिक बढ़कर 1.97 लाख रुपये हो गई है। उन्होंने अन्य महत्वपूर्ण उपलब्धियों के तौर पर अर्थव्यवस्था के औपचारिकीकरण में बढ़ोतरी और विशेष रूप से भुगतान क्षेत्र में डिजिटल तकनीकों को व्यापक रूप से अपनाए जाने का हवाला दिया।
सुश्री सीतारमण ने कहा कि ‘100 साल में भारत’ को ध्यान में रखते हुए इन बजट प्रस्तावों का मकसद “मजबूत सार्वजनिक वित्त के साथ एक प्रौद्योगिकी संचालित एवं ज्ञान आधारित अर्थव्यवस्था और एक मजबूत वित्तीय क्षेत्र” के सपने को हकीकत बनाना है। इस लक्ष्य को हासिल करने के वास्ते आर्थिक एजेंडे में अन्य बातों के अलावा विकास और रोजगार सृजन को ठोस तरीके से प्रोत्साहित करने पर ध्यान देने की जरूरत पर जोर देते हुए, वित्त मंत्री ने अपने बजट प्रस्ताव पेश किए जो इस सरकार की खासियत रही विभिन्न योजनाओं का वर्णन करने वाली संक्षिप्त शब्दावलियों के लिहाज से भारी - भरकम तो हैं, लेकिन विस्तृत ब्यौरे के लिहाज से अपेक्षाकृत हल्के नजर आते हैं। मसलन, पीएम विकास या प्रधानमंत्री विश्वकर्मा कौशल सम्मान पहली बार पारंपरिक कारीगरों और शिल्पकारों या विश्वकर्माओं को उनके उत्पादों की गुणवत्ता, पैमाने और पहुंच को बेहतर बनाने में मदद करने के मकसद से सहायता का एक पैकेज प्रदान करेगा। लेकिन, इसके वित्तीय परिव्यय और अमल के संभावित तौर - तरीकों सहित अन्य खासियतों का कोई जिक्र नहीं किया गया। इसी तरह ‘मैंग्रोव इनिशिएटिव फॉर शोरलाइन हैबिटैट्स एंड टैंजिबल इनकम’ या ‘मिष्टी‘, जिसका मकसद समुद्र तट के किनारे और नमक तैयार करने वाली भूमि पर मैंग्रोव वृक्षारोपण करना है, की फंडिंग को “मनरेगा और एक प्रतिपूरक वनीकरण कोष के बीच मेल“ के भरोसे छोड़ दिया गया है। जब खुद ग्रामीण क्षेत्र की मुख्य आधार मानी जाने वाली रोज़गार गारंटी योजना, जिसे कांग्रेस के नेतृत्व वाली संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार के कार्यकाल के दौरान पेश किया गया था, को ही बजटीय समर्थन से वंचित किया जा रहा है, तो यह थाह लगा पाना मुश्किल है कि पारिस्थितिकी (इकोलॉजी) के लिहाज से संवेदनशील मैंग्रोव की रक्षा और उसके पुनरुत्पादन की इस नई पहल की फंडिंग कैसे होगी। परिव्यय में यह कमी ऐसे समय में की गई है जब ग्रामीण अर्थव्यवस्था को अभी भी महामारी के कहर से उबरना बाकी है, पिछले साल की मानसून की वर्षा के असमान वितरण से आय में गिरावट हुई है और दूरदराज के इलाकों में रहने वाले परिवारों पर उच्च खाद्य मुद्रास्फीति का अपेक्षाकृत अधिक असर बना हुआ है।
व्यापक स्तर पर, 2023-24 में ग्रामीण विकास पर व्यय का बजट अनुमान 2.38 लाख करोड़ रुपये आंका गया है, जोकि कुल व्यय के अनुपात में देखे जाने पर 0.1 फीसदी अंक की मामूली वृद्धि के साथ पिछले बजट अनुमान के 5.2 फीसदी की तुलना में बढ़कर 5.3 फीसदी हुआ है। लेकिन अगर संशोधित अनुमान के आधार पर देखा जाए, तो यह परिव्यय 0.6 फीसदी अंक कम है। खाद्य सब्सिडी में भी खासी कटौती की गई है। इस बजट में खाद्य सब्सिडी पर 1.97 लाख करोड़ रुपये खर्च करने का प्रस्ताव है। यह राशि 2022-23 के बजट अनुमान से लगभग पांच फीसदी कम है और संशोधित अनुमान से 31 फीसदी कम है। निश्चित रूप से, राजकोषीय सुदृढ़ीकरण की राह पर अडिग रहने सरकार के संकल्प और खासतौर पर कोविड-19 महामारी की परिस्थितियों में अभूतपूर्व आर्थिक सिकुड़न के बीच राजस्व प्राप्तियों में गिरावट आने के बावजूद और अधिक खर्च करने की मजबूरी ने सुश्री सीतारमण को खर्च के मोर्चे पर बहुत कम छूट दी। खासकर उस स्थिति में जब उन्होंने एकबारगी यह तय कर लिया कि सरकार अपने संसाधनों को बुनियादी ढांचे और निवेश पर सार्वजनिक परिव्यय को बढ़ाने पर केंद्रित करेगी। पूंजीगत व्यय के लिए 10 लाख करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं, जोकि इस वित्तीय वर्ष के बजट अनुमान से 33 फीसदी ज्यादा है। अगर इसमें पूंजीगत परिसंपत्तियों के निर्माण के लिए राज्यों को सहायता अनुदान के लिए निर्धारित लगभग 3.7 लाख करोड़ रुपये को जोड़ दिया जाए, तो आर्थिक गतिविधि को बढ़ावा देने के लिए प्राथमिक प्रोत्साहन के रूप में सरकारी पूंजीगत व्यय के शक्तिवर्धक असर का इस्तेमाल करने की वित्त मंत्री की प्रशंसनीय मंशा साफ नजर आती है। जैसा कि आर्थिक सर्वेक्षण में साफ तौर पर बताया गया है, विकसित अर्थव्यवस्थाओं में मंदी की वजह से इस वर्ष वैश्विक स्तर पर मांग अनिश्चित रहने वाली है। लिहाजा , भारत के घरेलू बाजार को आवश्यक रूप से अर्थव्यवस्था के कवच के रूप में काम करना होगा। सुश्री सीतारमण ने व्यक्तिगत आयकर में बदलावों के जरिए मध्यम वर्ग को भी लुभाने की कोशिश की है, जोकि सीमा शुल्क में हुए बदलावों के साथ मिलकर सरकार पर कुल प्रत्यक्ष कर राजस्व के मद में 37,000 करोड़ रुपये के खर्च का बोझ डालेगा। इनमें से कुछ बदलावों का मकसद वेतनभोगियों और पेंशनभोगियों के हाथों में अधिक पैसा छोड़ना है, जिसके बारे में बजट योजनाकारों को उम्मीद है कि यह नकदी या तो बचत या फिर जरूरी उपभोग पर खर्चों में बढ़ोतरी के रूप में खजाने में वापस आ जाएगी। हालांकि आयकर में इन बदलावों के सबसे बड़े लाभार्थी उच्चतम आय वर्ग के होने की संभावना है, जहां प्रभावी दर में 3.74 फीसदी अंकों की कटौती की गई है। यह कटौती इस धारणा को मजबूत करती है कि यह सरकार अमीर लोगों की तरफदारी करती है।
This editorial was translated from English, which can be read here.
COMMents
SHARE