भारत के विकास से संबंधित अपने ताजा अपडेट में, विश्व बैंक ने भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए 2024-25 के दौरान सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में वृद्धि के अनुमान को इस साल की शुरुआत में अनुमानित 6.6 फीसदी से बढ़ाकर सात फीसदी कर दिया है। यह अनुमान अब अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष और एशियाई विकास बैंक की भविष्यवाणियों के अनुरूप है, लेकिन आरबीआई और फिच रेटिंग्स द्वारा अनुमानित 7.2 फीसदी की वृद्धि से थोड़ा कम है। भारत के विकास के संबंध में पहले की गईं उम्मीदें थोड़ी मामूली थीं, जिसकी आंशिक वजह पिछले साल इसकी मजबूत 8.2 फीसदी की वृद्धि और प्रतिबंधात्मक मौद्रिक नीतियों एवं लगातार भू-राजनीतिक तनावों के चलते वैश्विक अर्थव्यवस्था के कमजोर रहने की संभावनाएं थीं। विश्व बैंक का अनुमान है कि वैश्विक वृद्धि पिछले साल के 2.6 फीसदी के रफ्तार के समान ही होगी, जो महामारी के पहले के स्तरों से काफी नीचे है। इस कमजोर बाहरी माहौल और कोविड-19 के बाद के उबरने के प्रभावों के खत्म होने के बावजूद, बैंक के अर्थशास्त्रियों को अब उम्मीद है कि इस साल भारत की वृद्धि दर सात फीसदी के मजबूत स्तर पर रहेगी। हालांकि, बाहरी जोखिम इस पर हावी हो सकते हैं। इन जोखिमों में आपूर्ति श्रृंखलाओं एवं जिन्सों की कीमतों पर दबाव और मुद्रास्फीति का उभार शामिल है, जो केंद्रीय बैंकों को ब्याज दरों को ‘लंबे अरसे तक ऊंचा’ बनाए रखने के लिए मजबूर कर सकता है।
बैंक को उम्मीद है कि पिछले साल के कमजोर रुझानों के बनिस्बत इस साल निजी उपभोग में 5.7 फीसदी और कृषि क्षेत्र में 4.1 फीसदी की वृद्धि होगी। खेती की स्थिति में सुधार औद्योगिक विकास में आई हल्की नरमी की भरपाई एवं कमजोर ग्रामीण मांग को पुनर्जीवित कर सकता है और मध्यम अवधि में निजी निवेश को बढ़ाने में मदद कर सकता है, जबकि आने वाले सालों में जीडीपी की वृद्धि दर 6.5 फीसदी - 6.7 फीसदी के बीच रहने की उम्मीद है। गैर-कृषि क्षेत्रों में रोजगार पैदा करने की भारत की अनिवार्यता के संबंध में, बैंक ने निजी मैन्यूफैक्चरिंग निवेशों का समर्थन करने के वास्ते उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन योजनाओं और नए रोजगार से जुड़े प्रोत्साहन जैसे विचारों को स्वीकार किया। लेकिन ये सभी कदम शायद उस पैमाने की गतिविधि पैदा करने में सक्षम न हों, जिसकी भारत को अपने युवा श्रमशक्ति को संलग्न करने के लिए जरूरत है। बैंक ने विकास के एक महत्वपूर्ण इंजन - व्यापार - के प्रति भारत के नजरिए पर पुनर्विचार की जरूरत पर बल दिया है। वैश्विक व्यापार में भारत की हिस्सेदारी इसकी अर्थव्यवस्था के आकार से मेल नहीं खाती है और उसके द्वारा चीन के श्रम-प्रधान उत्पादन से हटने या बहुप्रतीक्षित ‘चीन प्लस वन’ संबंधी वैश्विक स्तर के बदलाव द्वारा पेश अवसर का लाभ उठाया जाना अभी बाकी है। पिछले एक दशक में निर्यात से संबंधित नौकरियों में आई गिरावट चिंता का एक विषय है, जिसे बैंक ने चिन्हित किया है और यह पूंजी एवं कौशल-प्रधान निर्यात की ओर बढ़ने की प्रक्रिया के साथ मेल खाती है। बैंक का कहना है कि भले ही व्यापार को सुविधाजनक बनाने के कदम और मुक्त व्यापार समझौतों को आगे बढ़ाना सराहनीय है, लेकिन ईएफटीए जैसे कुछ कदमों की संभावनाएं सीमित हैं। वस्तुओं, सेवाओं और निवेश के मामले में नई बाधाओं से प्रगति बाधित हुई है और बैंक ने एक ऐसी नई रणनीतिक व्यापार योजना बनाने का आह्वान किया है जो प्रशुल्क, गैर-प्रशुल्क संबंधी बाधाओं के साथ-साथ प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) से जुड़े प्रतिबंधों को कम करती हो और आरसीईपी जैसे बहुपक्षीय/बहुपक्षीय समझौतों के प्रति अनिच्छा पर पुनर्विचार करती हो। नीति निर्माताओं को इस नुस्खे पर गंभीरता से और तत्काल ध्यान देना चाहिए।
Published - September 05, 2024 11:23 am IST