आईएलओ के विश्व रोजगार और सामाजिक परिदृश्य अध्ययन (सितंबर) ने निश्चित रूप से विभिन्न राष्ट्रों के भीतर कुल आय में श्रम की आय संबंधी हिस्सेदारी में गिरावट के रुझान को तकनीकी प्रगति - मुख्य रूप से स्वचालन (ऑटोमेशन) और कृत्रिम बुद्धिमत्ता (आर्टिफीसियल इंटेलिजेंस) से जोड़ा है। पिछले दो दशकों का विश्लेषण करते हुए, इस अध्ययन में 2004-24 के बीच वैश्विक श्रम आय हिस्सेदारी में 1.6 फीसदी की गिरावट का उल्लेख किया गया है। घोर बदकिस्मती से, इस गिरावट का लगभग 40 फीसदी हिस्सा 2019-22 के महामारी वाले सालों के दौरान आया था यह एक ऐसी गिरावट थी, जिसकी भरपाई पिछले कुछ सालों में नहीं की गई है। श्रम आय हिस्सेदारी विभिन्न अर्थव्यवस्थाओं के भीतर आय संबंधी असमानताओं का आकलन करने के लिए व्यापक रूप से इस्तेमाल किया जाने वाला एक तरीका है। कुल 1.6 फीसदी की गिरावट मामूली लग सकती है, लेकिन यह निरंतर क्रयशक्ति समता के बरक्स 2.4 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर की खोई हुई उस मजदूरी के बराबर है जोकि 2004 के बाद से श्रम आय का हिस्सा स्थिर होने की स्थिति में श्रमिकों ने कमाया होता। विश्व स्तर पर खो दिया गया यह 2.4 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर वित्तीय वर्ष 2023-24 के लिए भारत के नाममात्र के जीडीपी के पूर्वानुमान के आधे से अधिक है। यह अध्ययन इस असमानता के लैंगिक पहलू पर भी रोशनी डालता है। अध्ययन का अनुमान है कि 2024 में दुनिया की लगभग एक तिहाई युवा महिलाएं (28.2 फीसदी) रोजगार, शिक्षा या प्रशिक्षण के मोर्चे से नदारद हैं, जो युवा पुरुषों (13.1 फीसदी) के मुकाबले दोगुना है। बढ़ती कामकाजी उम्र वाली आबादी वाले विकासशील देशों के लिए यह चिंताजनक है, क्योंकि यह तथ्य रोजगार सृजन की चुनौतियों को उजागर करता है। दरअसल, भारत में रोजगार की स्थिति पर आईएलओ की एक अन्य रिपोर्ट का अनुमान है कि यहां 83 फीसदी बेरोजगार युवा हैं। निजी क्षेत्र को श्रम आधारित रोजगार में निवेश करने के सरकार के हालिया निर्देशों को साथ मिलाकर यह तथ्य नौकरियों में वृद्धि और बढ़ती असमानता से जुड़े संकट की ओर इशारा करता है। यह संकट उत्पादन और श्रम उत्पादकता में वृद्धि के बावजूद है।
कई देश सार्वभौमिक बुनियादी आय (यूबीआई) या अर्थशास्त्रियों की भाषा में खड़े होने के लिए एक जमीन, के विचार पर सोच रहे हैं। सन् 2016 में जहां यूबीआई के मसले पर स्विट्जरलैंड में हुए जनमत संग्रह में इस विचार को हार का मुंह देखना पड़ा था, वहीं डेमोक्रेटिक उम्मीदवार और अमेरिकी तकनीकी निवेशक एंड्रयू यांग ने 2020 में व्हाइट हाउस की दौड़ में अपनी असफल कोशिश के दौरान, प्रत्येक अमेरिकी वयस्क को हर महीने 1,000 अमेरिकी डॉलर का ‘फ्रीडम डिविडेंड’ देने के विचार को मुख्यधारा में शामिल किया था। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने भी अपने 2019 के चुनाव अभियान के दौरान प्रत्येक परिवार को हर महीने 12,000 रुपये देने का प्रस्ताव रखा था और इसे “गरीबी के खिलाफ अंतिम हमला” बताया था। उद्योग जगत से जुड़ी कई रिपोर्टें रोजगार-रहित विकास के सिद्धांत का मुकाबला करने के लिए स्वचालन और एआई के चलते ऊंची तनख्वाह वाली नौकरी के सृजन की ओर इशारा करती हैं। लेकिन, यह भी सिर्फ आय-असमानता के रुझानों में तेजी को ही रेखांकित करती है। दरअसल, स्वचालन और एआई के लाभों के अपरिवर्तनीय होने के मद्देनजर सार्वभौमिक बुनियादी आय की दिशा में एक वैश्विक लक्ष्य ही शायद सतत विकास लक्ष्य 10 को हासिल कर सकता है या विभिन्न देशों के भीतर और बीच की असमानता को कम कर सकता है। शायद अब समय आ गया है कि भारत जैसे विकासशील देश धन संबंधी असमानता को दूर करने के उपाय के तौर पर विरासत कर को फिर से लागू करने पर विचार करें।
Published - September 06, 2024 10:49 am IST