बलात्कार के लिए सजा-ए-मौतः बंगाल का अपराजिता बिधेयक

महिलाओं के लिए पहले घरों और कार्यस्थलों को सुरक्षित बनाना होगा

Published - September 05, 2024 11:17 am IST

हरेक जघन्य यौन अपराध के बाद सजा-ए-मौत का शोर उठना और अध्यादेश जारी करके या विधेयक पारित करके इसे मान लेना, काफी आम हो गया है। दिल्ली में एक महिला से वहशियाना बलात्कार के बाद 2013 में आपराधिक कानूनों में बदलाव किया गया। उसके बाद, मध्य प्रदेश, राजस्थान, हरियाणा, आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र और अरुणाचल प्रदेश समेत कई राज्यों ने यौन हमले के लिए बढ़ी हुई सजा की खातिर संशोधन किये। मंगलवार को, पश्चिम बंगाल विधानसभा ने सर्वसम्मति से, ध्वनिमत से, “अपराजिता महिला और बाल (पश्चिम बंगाल आपराधिक कानून संशोधन) विधेयक, 2024” पारित किया। इससे पहले कोलकाता के एक सरकारी अस्पताल में 9 अगस्त को एक डॉक्टर के साथ बलात्कार व हत्या की घटना हुई, जिसे लेकर इंसाफ की मांग लगातार गूंज रही थी। यह विधेयक नयी दंड संहिता, भारतीय न्याय संहिता, की संबंधित धाराओं में संशोधन के जरिए बलात्कार के लिए सजा-ए-मौत या उम्रकैद का प्रावधान करता है। दरअसल, पांच अपराधों के लिए मौत की सजा का प्रावधान किया गया है – बलात्कार; पुलिस अधिकारी या लोक सेवक द्वारा बलात्कार; बलात्कार जिसके चलते मौत हो जाए या पीड़िता स्थायी कोमा में चली जाए; सामूहिक बलात्कार; और जुर्म दोहराने पर। यह विधेयक ऐसे अपराधों के समयबद्ध तरीके से विचारण (ट्रायल) के लिए विशेष अदालतों का प्रावधान करने की खातिर भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता में, और प्रवेशन (पेनेट्रेटिव) यौन हमले और इसके गंभीर रूपों के मामलों में सजा-ए-मौत का प्रावधान करने के लिए ‘यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण अधिनियम, 2012’ में संशोधन करता है। राज्य के संशोधनों को राष्ट्रपति की सहमति की जरूरत होगी।

इस बात के बहुत कम सबूत हैं कि मौत की सजा देने से यौन अपराध थम जाते हैं, लेकिन ऐसे अपराधों के बाद ज्यादा कठोर कानूनों की मांग पर अक्सर एक आधिकारिक प्रतिक्रिया होती है। यह कहकर कि “बलात्कार मानवता के लिए अभिशाप है और ऐसे अपराधों को रोकने के लिए सामाजिक सुधारों की जरूरत है,” खुद मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने इस विधेयक की जरूरत पर सवालिया निशान लगा दिया है जो सामाजिक सोच में बदलाव की कोशिश से ज्यादा कानूनी दंड पर भरोसा करता है। न्यायमूर्ति जे.एस. वर्मा कमेटी ने कहा था कि वह विरल से विरल मामलों में भी बलात्कार के लिए सजा-ए-मौत की सिफारिश करने की इच्छुक नहीं है, जिसके लिए उसने तर्क दिया कि “…सजा-ए-मौत की मांग करना सजा देने और सुधारने के क्षेत्र में एक प्रतिगामी कदम होगा।” हालांकि बाद में, 12 साल से छोटी लड़कियों के बलात्कार और 18 साल से छोटी लड़कियों के सामूहिक बलात्कार के मामले में मौत की सजा को शामिल किया गया; लेकिन महिलाएं खुद को ज्यादा सुरक्षित महसूस कर पाने से कोसों दूर हैं। यह भी दुखद है कि बंगाल में हुई नृशंस मौत केंद्र और राज्य के बीच एक राजनीतिक प्रतियोगिता बन गयी है। यह सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी हर सरकार की है कि कानून प्रभावी ढंग से लागू किये जाएं और यौन हमलों को रोकने व दंडित करने के लिए पुलिस बिना पक्षपात के काम करे। अगर महिलाओं के लिए पहले घरों व कार्यस्थलों को महफूज बनाकर उनके आगे बढ़ने की राह से अवरोध हटाये जाएं, तो इंसाफ और अच्छे से दिया जा सकेगा।

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