यूनाइटेड किंगडम के सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने स्कॉटिश नेशनल पार्टी की अगले साल के अंत में एक “परामर्शी जनमत संग्रह“ - स्कॉटलैंड को एक स्वतंत्र राष्ट्र बनाने के मुद्दे पर एक गैर-बाध्यकारी जनमत संग्रह - कराने की उम्मीदों पर कम से कम फिलहाल के लिए पानी फेर दिया है। सर्वोच्च अदालत ने स्कॉटिश सरकार द्वारा किए गए दो दावों को खारिज कर दिया: पहला, कि जनमत संग्रह के परामर्शी पहलू में यह निहित है कि इसका कोई संवैधानिक असर नहीं होगा और यह पूरी तरह से हस्तांतरित शक्तियों के कानूनी दायरे में आता है। और दूसरा, कि यह अंतरराष्ट्रीय कानून, जोकि राष्ट्रीय आत्मनिर्णय के अधिकार की लोकतांत्रिक अभिव्यक्ति की इजाजत देता है, के तहत वैध है। अदालत ने यह तर्क दिया कि होलीरूड के न्यागत संसद के पास अनिवार्य रूप से आजादी के मसले पर एक दूसरे जनमत संग्रह को अधिकृत करने की शक्ति उस समय तक नहीं है, जब तक कि वेस्टमिंस्टर संसद उसे ऐसा करने की सहमति न दे दे। स्वाभाविक रूप से, राजनीतिक अनिश्चितता के वर्तमान माहौल में, वेस्टमिंस्टर संसद ने ऐसी इजाजत नहीं दी है। जबकि, इस मसले पर पहला जनमत संग्रह 2014 में ही हो चुका है। इसके अलावा, यूनाइटेड किंगडम के सुप्रीम कोर्ट ने यह माना है कि जनमत संग्रह के लिए एसएनपी के मसौदा विधेयक से संवैधानिक प्रभाव पड़ने की संभावना है। यही नहीं, अदालत ने यह पाया है कि यूनाइटेड किंगडम के बरक्स स्कॉटलैंड की स्थिति एक ऐसे उप-राष्ट्रीय क्षेत्र के परिदृश्य के साथ मेल नहीं खाती है, जिस पर एक दुर्भावनापूर्ण विदेशी शक्ति द्वारा कब्जा कर लिया गया है और जो एक शोषक औपनिवेशिक नियंत्रण के अधीन है और जिसे सामूहिक इच्छा को प्रकट करने के लोकतांत्रिक अधिकार से वंचित कर दिया है। अंतरराष्ट्रीय कानून के तहत आजादी के दावे करने के इस बुनियादी मानक को पूरा नहीं किए जा सकने के मद्देनजर शीर्ष अदालत की नजर में इस किस्म के विचार का अब सीमाओं से परे पहुंचना संभव नहीं है।
एक बात तो स्पष्ट है: एसएनपी नेता और स्कॉटलैंड की प्रथम मंत्री निकोला स्टर्जन “चरमपंथी नहीं हैं”। यह स्वीकार करते हुए कि स्कॉटिश सरकार को अदालत के फैसले का पालन करना होगा, उन्होंने हालांकि यह कहा है कि वह चाहती हैं कि यूनाइटेड किंगडम का अगला आम चुनाव आजादी के मसले पर “वास्तविक जनमत संग्रह” हो। एसएनपी की योजना चुनाव में इसे एकल मुद्दा वाला अभियान बनाने की है। उनका यह रुख नाटकीय रूप से यूनाइटेड किंगडम की कंजरवेटिव पार्टी से उस रवैये से अलग नहीं है, जिसने कई चुनावों की व्याख्या ब्रेक्सिट पर जनमत संग्रह के रूप में की थी। इस विचार के साथ दो संबंधित मुद्दे नत्थी हैं। सबसे पहला, स्कॉटिश मतदाताओं के लिए स्कॉटलैंड की आजादी के अलावा अन्य मुद्दों पर अपनी प्राथमिकताएं व्यक्त करने की राजनीतिक गुंजाइश गायब हो गई होती और यह वास्तविक लोकतंत्र के लिए अच्छा नहीं होता। दूसरा अगर एसएनपी एक सत्तारूढ़ पक्ष के तौर पर सरकार (एनएचएस और क्षेत्रीय अर्थव्यवस्था सहित सार्वजनिक सेवाओं के प्रशासन) में अपने प्रदर्शन से ध्यान भटकाने हेतु आजादी के वास्ते जनमत संग्रह के मुद्दे का इस्तेमाल कर रही है, तो यह कदम भी स्कॉटलैंड में सुशासन के मकसद के लिए फायदेमंद नहीं है। जनमत संग्रह पर न्यायिक और राजनीतिक वीटो के कड़े विकल्प पर भरोसा करने के बजाय, वेस्टमिंस्टर के लिए स्कॉटलैंड के लोगों के दिल एवं दिमाग को जीतने के लिए और अधिक काम करना बुद्धिमानी होगी।
This editorial has been translated from English, which can be read here.
COMMents
SHARE