नेपाल के आम चुनाव के नतीजे उम्मीदों के मुताबिक है। इसमें नेपाली कांग्रेस, सीपीएन (माओवादी-केंद्र), सीपीएन (एकीकृत समाजवादी), लोकतांत्रिक समाजवादी पार्टी नेपाल और राष्ट्रीय जनमोर्चा की पांच पार्टियों वाले सत्ताधारी गठबंधन ने सरल बहुमत प्रणाली (फर्स्ट पास्ट द पोस्ट) में 165 सीटों में से कम से कम 87 सीटें या तो जीत ली है या उन पर आगे है। इसके अलावा, उम्मीद है कि यह गठबंधन 110 आनुपातिक प्रतिनिधित्व (पीआर) वाली सीटों में से लगभग आधी सीटें जीत जाएगा। पांचों पार्टियों के गठबंधन बनाकर लड़ने से उन्हें फायदा मिला और केपी ओली की अगुवाई वाले विपक्षी गठबंधन को शिकस्त देने में मदद मिली। ओली की नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी (एकीकृत मार्क्सवादी-लेनिनवादी) ने सरल बहुमत प्रणाली में 49 सीटों पर बढ़त बना ली है। हालांकि, आनुपातिक प्रतिनिधित्व वोटों में यूएमएल सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरती दिख रही है। इस जनादेश से यह पता चलता है कि लंबे समय तक दबदबा रखने वाली मुख्यधारा की पार्टियों के सामने अब चुनौतियां खड़ी हो गई हैं। मोटे तौर पर शहरी क्षेत्रों में पैठ रखने वाली नई-नवेली राष्ट्रीय स्वतंत्र पार्टी (आरएसपी) ने आठ सीटों पर बढ़त बना रखी है। कुल वोट के मामले में तीसरी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभर रही है, जबकि प्रतिनिधि सभा में भी उसे अच्छी-खासी पीआर सीट मिलने की उम्मीद है। पूर्व टेलीविजन पत्रकार रबि लामिछाने की अगुवाई वाली आरएसपी की विचारधारा बहुत स्पष्ट नहीं है, लेकिन वह संघवाद के खिलाफ है और संघीय संविधान के तहत स्थापित प्रांतीय विधानसभाओं को भंग करने की मांग कर रही है। इस पार्टी के बेहतर प्रदर्शन ने मुख्यधारा की पार्टियों के नकारापन को उजागर किया है कि वे नेपाल के लोगों के जीवन स्तर को सुधारने और बड़ी तादाद में पलायन करने वाले युवाओं की जिंदगी बेहतर बनाने में नाकाम रही हैं।
चुनाव के नतीजे माओवादियों और मधेसी पार्टियों के लिए भी झटका साबित हुए हैं। इन पार्टियों ने गणतांत्रिक नेपाल को संघीय स्वरुप देने में अहम भूमिका निभाई थी। संविधान-निर्माण में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका के बावजूद, इन पार्टियों को फायदा नहीं हुआ क्योंकि मतदाता उनके अवसरवादी राजनीतिक पैंतरों से थक गए हैं। हालांकि, नेपाल में गणतंत्रवाद या धर्मनिरपेक्षता के लिए कोई खतरा नहीं है, लेकिन ज्यादा व्यापक संघीय एजेंडा सुनिश्चित करना होगा, ताकि प्रांतों के पास पर्याप्त शक्ति रहे, वरना संघवाद के खिलाफ नाराजगी और बढ़ जाएगी। विजेता नेपाली कांग्रेस को भी इस चुनाव नतीजों का गहराई से विश्लेषण करना होगा जिसमें उसे युवा उम्मीदवारों के बेहतर प्रदर्शन का प्रसाद मिला है। बुजुर्गों की अगुवाई वाली इस पार्टी को अब युवा नेतृत्व (गगन थापा) के हाथों में कमान सौंपने पर विचार करना चाहिए। दक्षिण एशिया के दूसरे लोकतंत्रों से अलग नेपाल के चुनाव में धार्मिक/सांप्रदायिक आधार पर मतदान नहीं हुआ और चुनाव नतीजों भी देश की राजनीतिक विविधता के मुताबिक आए हैं। बेहतर विकास की ललक में दशकों तक लोकतंत्र का इंतजार करने वाले नेपाली नागरिकों को बदलाव चाहिए। उन्हें यह बदलाव मुहैया कराने की जिम्मेदारी अब राजनीतिक पार्टियों के ऊपर है।
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